भारतीय संविधान

भारतीय संविधान का निर्माण संविधान सभा द्वारा हुआ जो जुलाई 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के अंतर्गत गठित की गई थी संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई थी अधिवेशन में मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि शामिल नहीं हुए डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा को सर्वसम्मति अध्यक्ष चुना गया 11 दिसंबर 1946 को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष निर्वाचित हुए 13 दिसंबर 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्ताव पेश कीया तथा यह 22 जनवरी 1947 को पारित कर दिया गया प्रस्ताव ने कहा गया कि भारत एक पूर्ण समप्रभुता संपन्न गणराज्य होगा जो स्वयं अपना संविधान बनाएगा भारत संघ में ऐसी सभी क्षेत्र शामिल होंगे जो इस समय भारत ब्रिटिश में है या देशी रियासतों में है या इन दोनों से बाहर ऐसे क्षेत्र में है जो प्रभुता संपन्न भारत में पद अवसर और कानूनों की समानता विचार पर विश्वास व्यवसाय संघ निर्माण और कार्यों की स्वतन्त्रता कानून तथा सार्वजनिक नैतिकता के अधीन प्राप्त होंगे अल्पसंख्यक वर्ग पिछड़ी जातियां और कबायली जातियों के हितों की रक्षा समुचित व्यवस्था की जाएगी संविधान सभा का पहला का प्रारूप  संविधान परीमर्शदाता बी एन राव के निर्देशन में तैयार हुआ संविधान सभा का द्वितीय सत्र 20-1-1947 को तृतीय सत्र 22 अप्रैल 1947 को चतुर्थ 14 जुलाई 1947 को हुआ 22 जुलाई 1947 को भारत का तिरंगा ध्वज के रूप में अधिष्ठपित किया गया29 अगस्त 1947 को संविधान निर्माण हेतु 7 सदस्यों की एक प्रारूप समिति गठित की गई डॉक्टर भीमराव अंबेडकर इसके अध्यक्ष नियुक्त किए गए इस समिति के अन्य सदस्य थे सर अल्लादी आयगर के एम मुंशी टीटी कृष्णामाचारी एन गोपाल स्वामी मोहम्मद सादुल्ला बी एल मितर 15 नवंबर 1948 को प्रारूप सविधान पर विचार प्रारंभ हुआ 8 जनवरी 1949 को संविधान में प्रथम वाचन समाप्त हुआ 16 नवंबर 1949 को संविधान का तृतीय वाचन समाप्त हो गया संविधान का तीसरा वाचन 26 नवंबर 1949 तक चला और इस प्रकार भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हुआ विधानसभा के अंतिम दिन 24 जनवरी 1950 को संविधान की 3 प्रतियां सभा पटल पर रखी गई 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू किया गया भारतीय संविधान के निर्माण में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन लगे इस प्रकार लगभग ₹64 लाख रू खर्च हुए संविधान के प्रारूप पर भी114 दिन चर्चा होती रही भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद 22 अध्याय 12 अनुसूचियां हैं 42वें संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी धर्मनिरपेक्ष तथा अखंडता शब्द बढाये गए प्रस्तावना संविधान का अंग है प्रस्तावना के अनुसार भारत संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है 92वे संशोधन द्वारा दल बदल कर रोक लगाने की व्यवस्था की गई 61 वें संशोधन द्वारा लोकसभा राज्यसभा विधानसभा में सदस्यों को चुनने के लिए मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई जम्मू एवं कश्मीर को अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विशेष दर्जा प्राप्त भारतीय संविधान के प्रमुख स्रोतों में ब्रिटिश राजनीतिक व्यवस्था अमेरिका आयरलैंड ऑस्ट्रेलिया जापान के संविधान तथा भारतीय शासन अधिनियम 1935 प्रमुख है

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताए
1.संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य _उक्त प्रस्तावना के अनुकूल संविधान के अंतर्गत भारत संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न जन तंत्र आत्मक में राज्य है वह पूर्ण रूप से स्वतंत्र है भितर व बाहर किसी और से भी इस पर किसी बाहरी शक्ति का नियंत्रण नहीं है शासन जनता के प्रति उत्तरदाई है भारत एक गणराज्य है जिसका सर्वोच्च अधिकारी निर्वाचित राष्ट्रपति होता है 2.संसदीय जनतंत्र _भारतीय संविधान का आधार संसदीय जनतंत्र का सिद्धांत है संघ का अध्यक्ष राष्ट्रपति होता है परंतु उनकी स्थिति इंग्लैंड के सम्राट के समान नाम मात्र की होती है प्रधानमंत्री और उसका मंत्रिमंडल संसद के प्रति उत्तरदाई है (3).जनतन्त्रीय निर्वाचन प्रणाली_ इस सविधान ने देश के सभी नागरिकों को निर्वाचन के समान अधिकार दिए हैं केवल अनुसूचित और अनुसूचित जनजातियों के लिए देश को विभिन्न प्रतिनिधि संस्थाओं में कुछ स्थान सुरक्षित रखे गए हैं (४).पंथनिरपेक्ष राज्य सविधान किसी धर्म को प्रधानता नहीं देता भारत में सब धर्म समान है और यहां नागरिकों को अपना धर्म मानने और उस पर आचरण करने की पूर्ण स्वतंत्रता दी गई है बिना धार्मिक भेदभाव के उन्हें नागरिकता के अधिकार प्राप्त है (५).समाजवादी गणराज्य _संविधान निर्माताओं का आरम्भ से यह उद्देश्य था कि भारत में एक समाजवादी राज्य की स्थापना हो 42वें संशोधन द्वारा संविधान में समाजवादी शब्द जोड़कर यह लक्ष्य स्पष्ट तथा  सुनिश्चित कर दिया गया है अब राजनीतिक समानता के साथ-२ सामाजिक तथा आर्थिक समानता प्रत्येक भारतवासी को प्राप्त होगी
(6 ).कल्याणकारी राज्य संविधान का मूल उद्देश्य लोक कल्याण है मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्व के उल्लेख द्वारा उनकी व्यवस्था की गई है (7). मौलिक अधिकार भारतीय संविधान के अंतर्गत नागरिकों को अपने अधिकारों की रक्षा वाणी स्वतंत्र तथा अपनी स्वेच्छा अनुसार कार्य करने के लिए मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं यह अधिकार राज्य के लिए कानूनी कर्तव्य था नागरिक न्यायालय से उनका संरक्षण प्राप्त कर सकता है (8).नीति निर्देशक तत्व भारतीय संविधान के अंतर्गत नीति निर्देशक तत्व व्यक्ति के कानूनी अधिकार नहीं है उनके नैतिक अधिकार और राज्य के लिए उन्हें पूरा करना नैतिक कर्तव्य नीति निर्देशक तत्वों को आदर्श मानकर राज्य महामार्ग प्रस्तुत करता है (9) लिखित तथा विस्तृत संविधान भारतीय संविधान संसार का सबसे बड़ा लिखित तथा विस्तृत संविधान में संघीय शासन तंत्र के साथ-साथ राज्यों के शासन तंत्र का वर्णन किया गया है फिर भी इसमें कई तत्वधान में वर्णित नहीं है संविधान उन अभीसमयो  को अपनाने के पक्ष में है जो इंग्लैंड में प्रचलित रहे हैं (10). सरल और जटिल संशोधन प्रणाली का मिश्रण संविधान में संशोधन करने का अधिकार संसद को दिया गया है कुछ विशेष विषय में संशोधन प्रस्ताव उस  समय तक राष्ट्रपति के सामने स्वीकृति के लिए पेश नहीं किया जा सकता जब तक कि उसमें कम से कम आधे राज्यों का विधानमंडल स्वीकार न कर चुके (11) सामाजिक समानता भारतीय संविधान के अधीन छुआछूत को अपराध घोषित किया गया है छुआछूत के आधार पर मंदिरों तथा रेस्तरां में प्रवेश वर्जित नहीं किया जा सकता (१२). संघात्मक स्वरूप भारत का संविधान संघात्मक है यह लिखित संविधान है इसके अंतर्गत संघ और राज्यों के मध्य अधिकारों का विभाजन किया गया यह संविधान स्पष्ट तथा सर्वोच्च है इसके सरक्षण तथा व्याख्या के लिए सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है (१३).एकात्मक संविधान के गुणों का समावेश सिद्धांत की पुष्टि से हमारा संविधान संघात्मक है परंतु देश की विशालता प्रदेशिक मनोवृति संसार की वर्तमान स्थिति तथा इतिहास को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने संघ की दृढता के लिए अनेक उपाय अपनाएं राज्य में प्रत्येक व्यक्ति अपने राज्य का नागरिक होता है साथ ही वह सघ का भी नागरिक होता है भारत के संविधान में समस्त नागरिकों को केवल भारतीय नागरिकता प्रदान की गई है भारत के सभी न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के अधीन रखे गए हैं सारे देश के लिए समान कानून और दंड विधान रखा गया है इसी प्रकार संघ तथा विभिन्न राज्यों के लिए कुछ अखिल भारतीय सेवाओं की व्यवस्था की गई है केंद्र तथा राज्यों की अर्थव्यवस्था को देख के लिए एक ही महालेखा परीक्षक रखा गया इसी तरह संसद तथा राज्यों के विधानमडलो के निर्वाचन के लिए भी एक ही निर्वाचन आयुक्त की व्यवस्था की गई है

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